पुत्र-रत्न की प्राप्ति पर घर में उल्लास और हर्ष का जो वातावरण होता है, उसे संभवतः शब्दों के माध्यम से व्यक्त नहीं किया जा सकता है। और उस परिस्थिति का क्या ही वर्णन किया जाए जब एक की जगह जुड़वा बच्चे माँ की गर्भ से निकलते हैं। यहाँ बात हो रही है प्रभु श्री राम के अंश लव और कुश की। इस संसार में जब उन दोनों बच्चों का आगमन होता है तब सीता माता राजमहल से दूर महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में थीं और जन्म की सूचना वहां तक नहीं पहुंची थी। गायिका पल्लवी यादव के इस कर्णप्रिय सोहर में यह बताया गया है कि उन दोनों को पलने में झुलाते हुए जनक नंदिनी यही सोचती हैं कि यदि बच्चे आज अयोध्या में होते तो उनके पिता, दादी और अन्य परिजन उनपर सब कुछ न्यौछावर कर देते।
हे रामा, सीता के दुई रे ललनवा
पलन बीच झूलैं लें हो
हे रामा
रामा, धीरे-धीरे सीता झुलावें
मन ही मन सोचें
मन ही मन सोचें हो
रामा, आजु जो होते तुम अयोध्या
महल कंचन होती महल कंचन होती हो
रामा, सासू जो होती कौशल्या तो
सोनवा लुटवती त धनवा लुटवती हो
रामा, सीता के
रामा, घर-घर से अवतीं सब सखियाँ
तो पलना झुलवती ललन के खिलवती हो
रामा, द्वारे पे बजते नगाड़े
भीतर शहनाई भीतर शहनाई हो
रामा, वाल्मीकि जी के आश्रम
ललन हमरे खेलईं हो
रामा
रामा, धीरे-धीरे विद्या पढ़ावें
अउर वेद सिखावें हो
रामा, विष्णु चरण चित लाईं
दरस यहीं पावैं हो
रामा, फूल चन्द्रबली जाईं
सुनइया फल पावईं
गवइया फल पावईं हो
रामा, सीता के दुई रे ललनवा
पलन बीच झूलैं लें हो