बाजा म्यूजिक एंड रेडियो ऐप पर हम राजा भतृहरि द्वारा लिखित नीतिशतकम् ग्रंथ का ऑडियो बुक श्लोक-दर-श्लोक भावार्थ सहित प्रस्तुत कर रहे हैं।
बोद्धारो मत्सरग्रस्ताः प्रभवः स्मयदूषिताः।
अबोधोपहताश्चान्ये, जीर्णमंगे सुभाषितम्॥
नीतिशतकम् के दूसरे श्लोक का सार यह है कि जो आपकी बात सुनना पसंद करे, सिर्फ उसे ही अपनी बात सुनाएं। जो आपकी बात सुनना पसंद नहीं करते उनके सामने अपनी बात न रखें, वरना आप अपमानित होंगे।
कवि ने श्लोक में तीन प्रकार के व्यक्तियों के संबंध में संकेत किया है। प्रथम श्रेणी में ज्ञानी-जन हैं। वह कहते हैं कि जो विद्वान् हैं, पण्डित हैं, उन्हें अच्छे-बुरे का ज्ञान है, इसके बावजूद वे अपनी विद्वता के अभिमान से मतवाले हो रहे हैं। वे दूसरों के उत्तम से उत्तम कार्यों में मीनमेख निकालना अपना पांडित्य समझते हैं।
वहीं, दूसरे प्रकार के जो लोग हैं, वे धनी हैं। उन्हें धन-मद की वजह से कुछ सूझता नहीं है। उन्हें किसी से बातें करना या किसी की बात सुनना पसंद नहीं है। अतः उनसे भी बात करके कोई फायदा नहीं है।
तीसरे प्रकार के लोग, नितान्त मूर्ख या अज्ञानी हैं। ऐसे लोगों में अच्छे-बुरे की पहचान नहीं होती है। हमारे मुख से निकलने वाले उत्तम विचार भी उनके सामने गौण होते हैं। सबसे अच्छी बात का भी उनके लिए कोई मतलब नहीं होता।
यह श्लोक और इसका भावार्थ यदि आपको पसंद आए तो इसके बारे में अपने स्वजनों व मित्रों को बताएं।