इस गीत का भावार्थ बड़ा आध्यात्मिक है। “ओका” का अर्थ “ओंकार” तथा “बोका” का अर्थ “बोलने या मन्त्र का जप करने वाले से है।” तीन तड़ोका का अर्थ तीनों गुण अर्थात सतोगुण, रजोगुण, एवं तमोगुण के तोड़ देने से है। यही तीन गुण मनुष्य को सांसारिक बंधन में बांध कर रखते हैं। कबीरदास ने भी कहा है कि “तिरगुन फांस लिए कर डोले।” “लउवा लाठी” का अर्थ साधारण या महत्वहीन लकड़ी से है जबकि “चनना काठी” चन्दन की लकड़ी अर्थात उत्तम लकड़ी की और संकेत है।
तात्पर्य यह है कि ओंकार का जप करने से खराब आदमी भी अच्छा बन जाता है। “इजई बिजई” का तात्पर्य अच्छे आदमी के जय-विजय प्राप्त करने से है। “पानी दे पुचुक” का स्पष्ट अर्थ है कि पानी के बुलबुले की भांति मनुष्य का जीवन न केवल क्षणिक है वरन वह अपने अस्तित्व को मिटाकर ही आत्मा-परमात्मा का मिलन कर पाता है और तभी उसकी मुक्ति संभव है। कबीरदास जी ने भी इसी आशय के एक दोहे की रचना की है जो निम्न प्रकार है —
जल में कुम्भ में जल है, बाहर भीतर पानी।
फूटा कुम्भ जल जलहिं समाना यह तत कहेउ गयानी।।
ओका बोका तीन तड़ोका, लउवा लाची चनना काठी।
चनना के नांव का इजई, बिजई पानी दे पुचुक।।
साभार: डॉ.(श्रीमती) राजेश्वरी शांडिल्य