शून्य की खोज सबसे पहले यदि आर्यभट्ट ने 5वीं सदी में की थी, तो द्वापरयुग में 100 कौरवों की गणना, और त्रेतायुगमें रावण के 10 सिरों की गणना किसने की?
यह सबसे बड़ा प्रश्न है।
अब तक हम पढ़ते आ रहे हैं कि शून्य की खोज सबसे पहले पांचवी शताब्दी में आर्यभट्ट ने की थी। वस्तुतः ऐसा नहीं था। यह अलग बात है कि आर्यभट्ट ने अंकों की नई पद्धति को जन्म दिया था। उन्होंने अपने ग्रंथ आर्यभटीय में भी उसी पद्धति में कार्य किया है।
तो फिर क्या वजह है कि भारतीय इतिहासकारों व विद्वानों ने आर्यभट्ट को शून्य का रचयिता घोषित कर दिया। इसका उद्येश्य संभवतः भारतीय, वेदों, पुराणों व शास्त्रों को आर्यभट्ट का परवर्ती सिद्ध करना हो सकता है।
शून्य के बारे में दुनिया को सबसे पहले आर्यभट्ट ने नहीं, बल्कि वेदों ने बताया था।
वेदों में 1 से लेकर 18 अंकों तक (इकाई से परार्ध ) की गणना की गयी है । 1 के अंक में 0 लगाने पर ये गणना क्रमशः बढ़ती जाती है, इस का स्पष्ट उल्लेख वेद यजुर्वेद में है।
इमा मेऽअग्नऽइष्टका धेनवः सन्त्वेका च दश च दश च शतञ्च शतञ्च सहस्रञ्च सहस्रञ्चायुतञ्चायुतञ्च नियुतञ्च
नियुतञ्च प्रयुतञ्चार्बुदञ्च न्यर्बुदञ्च समुद्रश्च मध्यञ्चान्तश्च परार्धश्चौता मेऽअग्नऽइष्टका धेनवः सन्त्वमुत्रामुष्मिँल्लोके ॥
भावार्थः
हे अग्ने। ये इष्टकां (पांच चित्तियो में स्थापित) हमारे लिए अभीष्ट फलदायक कामधेनु गौ के समान हों। ये इष्टका परार्द्ध -सङ्ख्यक (1०००००००००००००००००) एक से दश, दश से सौ, सौ से हजार, हजार से दश हजार, दश हजार से लाख, लाख से दश लाख, दश लाख से करोड़, करोड़ से दश करोड़, दश करोड़ से अरब,अरब से दश अरब, दश अरब से खरब, खरब से दश खरब, दश खरब से नील, नील से दश नील, दश नील से शंख, शंख से दश शंख, दश शंख से परार्द्ध (लक्ष कोटि) है।
यहां स्पष्ट एक-एक शून्य जोड़ते हुए काल गणना की गई है।
अब आते हैं कि आर्यभट्ट ने कैसे शून्य की खोज की?
दरअसल, विज्ञान की दो क्रियाएं हैं एक है आविष्कार(इन्वेंट) दूसरी है खोज(डिस्कवर)।
आविष्कार उसे कहते हैं जो विद्यमान नहीं है और उसे अलग-अलग पदार्थों से बनाया जाए, वो आविष्कार है।
खोज उसे कहते हैं जो पहले से विद्यमान हो, लेकिन बाद में खो गई हो। उसकी तलाश फिर से की जाए, तो यह खोज।
इस आधार पर देखें तो शून्य और अंको की खोज आर्यभट्ट ने की। उन्होंने इसका आविष्कार नहीं किया, जैसा आमतौर पर कहा जाता है।